आंखों में क्यों आंसू छलक जाते हैं..
तन्हाईयों में क्यों गम याद आते हैं ..
आंसू पोंछ कर कोई बता दे हमें ...
भूल जाने वाले क्यों अक्सर याद आते हैं..
आंसुओं को बहुत समझाया की तन्हाई में आया करो ..
इस तरह महफिल में हमारा मजाक मत उड़ाया करो..
पर आंसू रो पड़े .. और टपक कर बोले..
इतने लोगों में आपको तनहा पाते हैं ..इसलिए चले आते हैं..
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3 comments:
The poignance of your creative seclusion ,as visible through your words ,is simply amazing and your tears are as pious as are the pearls derived from an ocean.
Continue enshrining the blog with your sensations.........
Bahut achi kavita hai!
keep going!
waah waah ustad..kya baat hai !! aap kehte jaiye..
humein aur sunna hai
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