मंजीलें भी उस की थी
रास्ता भी उस का था
एक मैं ही अकेला था
काफीला भी उस का था
साथ साथ चलने की सोच भी उस की थी
फीर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उस का था
आज क्यों अकेला हूँ दील सवाल करता है
लोग तों उस के थे, क्या खुदा भी उस का था ??
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1 comment:
great poem again!
too good!
ek dard hai, ek ehsaas hai!
ek dard ka ehsaas hai!
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