दिल - ऐ - बेताब सीने में धड़कता क्यों है..
जब चलती है सर्द हवा.. यूं दर्द सा इसमें भड़कता क्यों है..
काश के होता मैं परवाना उस शम्मा का..
जलकर ही सही, छोड़ देता अफसाना उस समां का..
जिस शाम उसने चूमे थे ये लब लबों से ..
उस शाम को याद कर.. ये तड़पता क्यों है..
करता नही क्यों शिकवा अपने गम की मुझसे..
बता दिल - ऐ - नादान चुपचाप ही यूं मरता क्यों है
दिल - ऐ - बेताब सीने में धड़कता क्यों है..
जब चलती है सर्द हवा.. यूं दर्द सा इसमें भड़कता क्यों है..
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