Saturday, January 5, 2008

अकेला

मंजीलें भी उस की थी
रास्ता भी उस का था
एक मैं ही अकेला था
काफीला भी उस का था

साथ साथ चलने की सोच भी उस की थी
फीर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उस का था
आज क्यों अकेला हूँ दील सवाल करता है
लोग तों उस के थे, क्या खुदा भी उस का था ??

1 comment:

arvind batra said...

great poem again!
too good!

ek dard hai, ek ehsaas hai!
ek dard ka ehsaas hai!