Thursday, January 17, 2008

आहटें

आहटें कहती हैं जो.. उनका फ़साना लगता है..
अकेले में भी हर वक्त.. उनका पास आना लगता है..

कुछ तो हो जो अब दिल को संभाले अपने..
अब तो हर वक्त जैसे.. इस दिल का जाना लगता है..

क्या कहूं के ये भोर है के शाम ..
यूं तो अब हमें हर वक्त ही सुहाना लगता है..

कहते हैं वो के.. "बातें" बना रहे हो तुम..
कैसे बतायें के.. उन्ही से हमें ये ज़माना लगता है..
...
...

दिल में तरंगें सी जो उठती हैं यूं ..
ये तो जैसे उनका गुदगुदाना लगता है..

हमें सताके हस्ते हैं वो.. नही जानते के ख़ुद भी फसते हैं वो..
दूर जाके जैसे फ़िर से पास आना लगता है..

चाँद में दिखता है जिसका चेहरा.. हर वक्त है जैसे जिसका पहरा ..
वो इंसान हमें अब खुदा से भी सुहाना लगता है ..

क्या बात है उनमे ऐसी .. ये हम नही जानते ..
लेकिन अब तो बस उनके लिए जीना .. फ़िर मर जाना लगता है ..

3 comments:

aman said...

bahut khoob!

arvind batra said...

man!
that is too good!
fundoo!

you know, your kavita actually captures most of the rules of ghazal.
Yes writing ghazal has got some rules, the only thing missing (i think) that the last para should contain the author's kalaam in some way! add it too.

again ..bahut sahi hai!

aman said...

yes i agree with batra..this really looks like a ghazal..keep writing !!we want more